प्राचीन चट्टानों में मिले हैं शार्क प्रजातियों के दाँत
नई दिल्ली, 18 सितंबर: एक दुर्लभ खोज में, भारतीय शोधकर्ताओं को एक विलुप्त शार्क समूह, जिसे हायबोडोंट कहा जाता है, की एक प्रजाति के प्रमाण राजस्थान के जैसलमेर के रेगिस्तान से मिले हैं।
शोधकर्ताओं को शार्क प्रजातियों के दाँत प्राचीन चट्टानों में मिले हैं, जिनकी आयु 160 से 168 मिलियन वर्ष आंकी गई है।
ट्राइऐसिक काल और प्रारंभिक जुरासिक काल (252-174 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान समुद्री और नदी; दोनों वातावरणों में हायबोडोंट मछलियों का एक प्रमुख समूह था। हालांकि, मध्य जुरासिक काल (174-163 मिलियन वर्ष पूर्व) से समुद्री वातावरण में रहने वाली इन मछलियों की संख्या में गिरावट होने लगी, जब तक कि वे खुले समुद्री शार्क संयोजन का अपेक्षाकृत अल्पवयस्क घटक नहीं बन गईं। माना जाता है कि मछलियों की यह प्रजाति अंततः 65 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस काल के अंत में विलुप्त हो गई थी।
शार्क का नया खोजा गया जीवाश्म स्ट्रोफोडस वंश से संबंधित बताया जा रहा है। यह पहली बार है जब भारतीय उपमहाद्वीप से स्ट्रोफोडस वंश से संबंधित किसी प्रजाति की पहचान की गई है। इसके अलावा, यह एशिया का केवल तीसरा ऐसा रिकॉर्ड है, जबकि अन्य दो रिकॉर्ड जापान और थाईलैंड से हैं। शोध दल को जिस स्थान पर यह जीवाश्म मिला है, उसके नाम पर ही इसका नाम स्ट्रोफोडसजैसलमेरेनसिस रखा गया है। इसे हाल ही में शार्क रेफरेंस डॉट कॉम में शामिल किया गया है, जो एक अंतरराष्ट्रीय मंच है, जो इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) और स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन (एसएससी) सहित कई वैश्विक संगठनों के सहयोग से काम कर रहा है।
यह खोज राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में जुरासिक कशेरुकी जीवाश्मों के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जा रही है, और यह कशेरुकी जीवाश्मों के क्षेत्र में आगे के शोध के लिए एक नये द्वार खोलती है।
दाँतों के इस जीवाश्म को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) के जयपुर स्थित पश्चिमी क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों की एक टीम ने खोजा है। इस टीम में कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे, त्रिपर्णा घोष और देबाशीष भट्टाचार्य शामिल हैं। उन्होंने हिस्टोरिकल बायोलॉजी, जर्नल ऑफ पैलियोन्टोलॉजी में अपनी खोज पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। डॉ सुनील बाजपेयी, विभागाध्यक्ष, पृथ्वी विज्ञान विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की, जो इस अध्ययन के सह-लेखक हैं, ने इस महत्वपूर्ण खोज की पहचान और प्रस्तुति में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की स्थापना 1851 में मुख्य रूप से रेलवे के लिए कोयले के भंडार का पता लगाने के लिए की गई थी। इन वर्षों में, यह न केवल देश में विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक भू-विज्ञान की जानकारी के भंडार के रूप में विकसित हुआ है, बल्कि इसने अंतरराष्ट्रीय ख्याति के भू-वैज्ञानिक संगठन का दर्जा भी प्राप्त किया है। इसका मुख्य कार्य राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक जानकारी और खनिज संसाधन के मूल्यांकन से संबंधित है। इन उद्देश्यों को भूमि सर्वेक्षण, हवाई एवं समुद्री सर्वेक्षण, खनिजों की खोज एवं परीक्षण, बहु-विषयक भूवैज्ञानिक, भू-तकनीकी, भू-पर्यावरण तथा प्राकृतिक खतरों के अध्ययन, हिमनद विज्ञान, भूकंपीय विवर्तनिक अध्ययन और मौलिक अनुसंधान के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
सर्वेक्षण और मानचित्रण में जीएसआई की क्षमता में, प्रबंधन, समन्वय और स्थानिक डेटाबेस (रिमोट सेंसिंग के माध्यम से प्राप्त डेटा सहित) के उपयोग के माध्यम से निरंतर वृद्धि हुई है। जीएसआई भू-सूचना विज्ञान क्षेत्र में अन्य हितधारकों के साथ सहयोग और सहयोग के माध्यम से भू-वैज्ञानिक सूचना और स्थानिक डेटा के प्रसार के लिए नवीनतम कंप्यूटर-आधारित तकनीकों का उपयोग करता है।
(इंडिया साइंस वायर)
[…] group of sharks called hybodont from the deserts of Jaisalmer in Rajasthan. They found the teeth of the shark species in ancient rocks that were dated between 160 and 168 million years […]