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सौर पैनल्स को साफ रखने में उपयोगी होगी सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग प्रौद्योगिकी

नई दिल्ली, 21 नवंबर2022: बिजली की बढ़ती माँग और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए सौर ऊर्जा का उपयोग महत्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन, सौर पैनल का रखरखाव न हो तो ऊर्जा आपूर्ति बाधित हो सकती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)जोधपुर के शोधकर्ताओं ने ऐसी सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग प्रौद्योगिकी विकसित की है, जो सौर पैनल्स को साफ रखने में उपयोगी हो सकती है।

नई विकसित कोटिंग पारदर्शी, टिकाऊ और सुपरहाइड्रोफोबिक है। यह कोटिंग सौर पैनलों पर धूल के संचय को कम करती है और बहुत कम पानी के साथ स्वयं सफाई करने में सक्षम है। सौर पैनल निर्माण संयंत्रों के साथ इस कोटिंग को आसानी से एकीकृत किया जा सकता है।

आईआईटी जोधपुर (IIT Jodhpur) के वक्तव्य के कहा गया है कि इस प्रौद्योगिकी को पेटेंट अनुमोदन के लिए भेजा गया है।  

धातुकर्म और सामग्री इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. रवि के.आर. के नेतृत्व में यह अध्ययन उनकी टीम में शामिल परियोजना सहायक मीनानामूर्ति जी. और प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप योजना (PMRF) के शोधार्थी मोहित सिंह द्वारा किया गया है।

सौर पैनलों का प्रदर्शन कम क्यों हो जाता है?

सौर पैनल बनाने वाले उद्योगों का दावा होता है कि आमतौर पर ये पैनल 20 से 25 वर्षों तक अपनी 80 से 90 प्रतिशत दक्षता पर काम करते हैं। हालांकि, यह सर्वविदित है कि सौर पैनलों पर धूल और रेत जमा होने से उनका प्रदर्शन कम हो जाता है। सौर ऊर्जा संयंत्र के स्थान और जलवायु विविधता के आधार पर यह प्रभाव अलग-अलग हो सकता है। लेकिन, यह तो तय है कि लगातार धूल जमा होती रहे तो कुछ महीनों के भीतर सौर पैनल 10 से 40 प्रतिशत तक अपनी दक्षता खो सकते हैं।

कैसी है सौर पैनल को साफ करने के लिए की मौजूदा विधि

शोधकर्ताओं का कहना है कि सौर पैनल को साफ करने के लिए वर्तमान में उपयोग की जाने वाली विधियाँ महंगी और अकुशल हैं। इन विधियों के निरंतर उपयोग में विभिन्न व्यावहारिक समस्याएं आती हैं और सफाई के दौरान सौर पैनल को क्षति पहुँचने का खतरा रहता है। इसीलिए, आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने सुपरहाइड्रोफोबिक सामग्री का उपयोग करके यह सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग विकसित की है।

विकसित सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग में उत्कृष्ट सेल्फ-क्लीनिंग गुण हैं और इससे पारगम्यता या बिजली रूपांतरण से दक्षता में हानि नहीं होती है। प्रयोगशाला परीक्षणों के दौरान इस कोटिंग में पर्याप्त यांत्रिक और पर्यावरणीय स्थायित्व देखा गया है। आसान छिड़काव और वाइप तकनीकों से लैस यह कोटिंग प्रौद्योगिकी मौजूदा फोटोवोल्टिक बिजली उत्पादन में प्रभावी पायी गई है। सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग्स के उपयोग से सेल्फ-क्लीनिंग में अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसके उपयोग से कम लागत में सौर पैनलों का प्रभावी रखरखाव किया जा सकता है। पानी की कमी वाले क्षेत्रों में यह प्रौद्योगिकी विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है।

डॉ. रवि के.आर. ने कहा है – “वास्तविक समय के अनुप्रयोगों में इसके उपयोग के लिए शिक्षाविदों और उद्योगों की भूमिका महत्वपूर्ण है। शिक्षाविदों और उद्योग के बीच सिर्फ प्रौद्योगिकी प्रदाता एवं प्राप्तकर्ता का संबंध ही नहीं है, बल्कि इन दोनों की भूमिका परस्पर सहभागिता एवं सहयोग पर आधारित है। इसलिए, हमारी टीम इस कोटिंग तकनीक के बड़े पैमाने पर उत्पादन, व्यापक प्रसार एवं लाभ के लिए उद्योग भागीदारों के साथ मिलकर काम करना चाहती है।”

भविष्य में, शोधकर्ता देश के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे शुष्क और अर्द्ध-शुष्क, तटीय क्षेत्रों और ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में वास्तविक समय में सेल्फ-क्लीनिंग कोटिंग के स्थायित्व का अध्ययन करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इसके साथ ही, उपयोग के दौरान होने वाले नुकसान के लिए विभिन्न री-कोटिंग विकल्पों की भी पड़ताल की जा रही है।

(इंडिया साइंस वायर)

Indigenous self-cleaning coating technology for better maintenance of solar panels

By Editor

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